दिल फटता है कलम रूकती है फूलों की ऐसी विदाई पर , हमने तो अपना सब कुछ दे डाला तरस आता है उनकी रुसवाई पर , बातें वही पुरानी अब तक अब कुछ अच्छा करके देखेंगे तुम तो अपना(वोट ) दे चुके हो हम तुम्हे अगले चुनाव में देखेंगे आज देखे और देखते रह गए फूलों की कोई परवाह न की , मां की सूनी कोख न देखी बाप की बेबसी की परवाह न की , गुलिस्तां को सँवारने चले है फूल बिना ये गुलशन कैसा कलियाँ सिसक सिसक के रूठी बिना बहार ये चमन कैसा देखा पतझर हमने पहले भी पर पत्ते गिरते थे पुराने वाले चमन सूना और बागबाँ रोता है ये वो फूल थे चमन महकाने वाले सब कुछ होता रहा गुलशन में माली की ख़ामोशी कुछ ऐसी है न हलचल हुई न उसकी नींद टूटी ये उसकी मदहोशी अब कैसी है फूलों की ज़रूरत न माली को है पर दरख्तों की हालत अब कौन सुने जिसकी कलियाँ सुखी, फूल गिरे अब सूखे फूल को कौन चुने सुना मौसम वैज्ञानिक रहते है तेरे कुनबे में क्यों इस अंधड़ को वो पहचान न पाए हो रहा अब ये क्यों गुलशन सूना राजनीति की तरह क्यों जान न पाए ©️किसलय कृष्णवंशी "निश्छल"