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भले हीं. कितनी ज़ोर से क्यों न ये बादल गरजता ह

भले हीं. कितनी ज़ोर
से  क्यों न ये  बादल   गरजता 
हो  बरसता हो
चाहे  ये  नर बक्शी  हिंसक
बब्बर शैर  कितनी ज़ोर से
दहड़ता  क्यों न हो
और  कड़जड़ाती हुई  ये बिजलीया
चमकती क्यों  न हो
मै  भयभीत  होने  वाला
बिलकुल नहीं  हूँ

©Parasram Arora
  भयभीत

भयभीत #कविता

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