अकेले बैठ कर तुमको मैं जब भी याद करती हूँ, मैं रोना मुस्कुराना हाय दोनो साथ करती हूँ। यहीं सोफे पे बैठे सात अम्बर घूम आती हूँ, तुम्हारा नाम चख़ती हूँ नशे मे झूम जाती हूँ, कहाँ हूँ मैं जहाँ मेरी ख़बर मुझ तक नहीं आती, क्या मेरी ग़ुमशुदी की ये ख़बर तुम तक नहीं जाती, गली दिल की तुम्हारी याद से आबाद करती हूँ, अकेले बैठ कर तुमको मैं जब भी याद करती हूँ। तेरा जाना मेरी आँखों में प्यासे ख़वाब बोता है, तेरा तकिया लिपट कर मुझसे सारी रात सोता है, तेरी ख़ुशबू मेरी सांसों की गलियों में टहलती हैं, बङी कमबख़्त है ये याद आँखों में पिघलती है, मैं सारी रात सोना जागना एक साथ करती हूँ, अकेले बैठ कर तुमको मैं जब भी याद करती हूँ। तेरी बातों के फूलों से ग़ज़ल मख़दूम करती हूँ, मैं चुपके से तेरी डी पी को जब भी ज़ूम करती हूँ, तेरे फूके हुए सिगरेट में अक्सर राख़ होती हूँ, तेरी ल़त में कभी धुआं कभी मैं ख़ाक होती हूँ, मैं अपने ज़ख्म पर अश्कों की ख़ुद बरसात करती हूँ, अकेले बैठ कर तुमको मैं जब भी याद करती हूँ। ©Swati Mishra akele baith kar by Anita Singh #vacation