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#कन्यादान #कन्यादान भाग3 मेरी एक सहेली ने संजना क

#कन्यादान #कन्यादान
भाग3

मेरी एक सहेली ने संजना को अपनी कंपनी में नोकरी दे दी।वो उसकी हर तरह से मदद कर रही थी। मैं अपनी सहेली की बड़ी आभारी हूँ।धीरे धीरे संजना नॉर्मल होना शुरू हो रही थी,तभी मेरे मन में ख्याल आया ,क्यों न मैं इसकी दोबारा शादी कर दूं।इतनी लंबी उम्र कैसे काटेगी भला,मेरा क्या था अधेड़ उम्र की हो गयी थी,पहले मेरे पति फिर बेटे की मृत्यु ने मुझे वैसे भी खत्म कर दिया था। ज़िन्दगी भर बस संघर्ष ही किया था मैंने।अब थक गई थी मैं, अपनी बहू को और बच्चों को उदास नहीं देख पा रही थी।दुनिया के सामने मज़बूत चट्टान की तरह खड़ी रहती थी मैं मगर अंदर से एकदम खोखली हो चुकी थी मैं।संजना के परिवार वाले बहुत गरीब थे,वो उसकी सुध कम ही लेते थे।शायद डरते थे कि बेटी वापस घर ना आ जाये। मुझे संजना के पुनर्विवाह के अलावा कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। मेरी दोस्त ने भी मेरे फैसले को काफी सराहा।
#कन्यादान #कन्यादान
भाग3

मेरी एक सहेली ने संजना को अपनी कंपनी में नोकरी दे दी।वो उसकी हर तरह से मदद कर रही थी। मैं अपनी सहेली की बड़ी आभारी हूँ।धीरे धीरे संजना नॉर्मल होना शुरू हो रही थी,तभी मेरे मन में ख्याल आया ,क्यों न मैं इसकी दोबारा शादी कर दूं।इतनी लंबी उम्र कैसे काटेगी भला,मेरा क्या था अधेड़ उम्र की हो गयी थी,पहले मेरे पति फिर बेटे की मृत्यु ने मुझे वैसे भी खत्म कर दिया था। ज़िन्दगी भर बस संघर्ष ही किया था मैंने।अब थक गई थी मैं, अपनी बहू को और बच्चों को उदास नहीं देख पा रही थी।दुनिया के सामने मज़बूत चट्टान की तरह खड़ी रहती थी मैं मगर अंदर से एकदम खोखली हो चुकी थी मैं।संजना के परिवार वाले बहुत गरीब थे,वो उसकी सुध कम ही लेते थे।शायद डरते थे कि बेटी वापस घर ना आ जाये। मुझे संजना के पुनर्विवाह के अलावा कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। मेरी दोस्त ने भी मेरे फैसले को काफी सराहा।

#कन्यादान भाग3 मेरी एक सहेली ने संजना को अपनी कंपनी में नोकरी दे दी।वो उसकी हर तरह से मदद कर रही थी। मैं अपनी सहेली की बड़ी आभारी हूँ।धीरे धीरे संजना नॉर्मल होना शुरू हो रही थी,तभी मेरे मन में ख्याल आया ,क्यों न मैं इसकी दोबारा शादी कर दूं।इतनी लंबी उम्र कैसे काटेगी भला,मेरा क्या था अधेड़ उम्र की हो गयी थी,पहले मेरे पति फिर बेटे की मृत्यु ने मुझे वैसे भी खत्म कर दिया था। ज़िन्दगी भर बस संघर्ष ही किया था मैंने।अब थक गई थी मैं, अपनी बहू को और बच्चों को उदास नहीं देख पा रही थी।दुनिया के सामने मज़बूत चट्टान की तरह खड़ी रहती थी मैं मगर अंदर से एकदम खोखली हो चुकी थी मैं।संजना के परिवार वाले बहुत गरीब थे,वो उसकी सुध कम ही लेते थे।शायद डरते थे कि बेटी वापस घर ना आ जाये। मुझे संजना के पुनर्विवाह के अलावा कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। मेरी दोस्त ने भी मेरे फैसले को काफी सराहा।