शीर्षक -" जो मैं याद आऊं तुम्हे" जो मैं याद आऊं तुम्हे तो एक बार पीछे मुड़ ही जाना कदमो के अनगिनत निशाँ में ढूंड ही लेना मुझे जो मैं याद आऊं तुम्हे तो देख लेना मेरी तस्वीर को जो तुमने खुद ही खींची थी अपने कैमरे से मेरी तस्वीर छू कर महसूस कर लेना मुझे जो मैं याद आऊं तुम्हे तो घर की साफ़ सफाई करते करते ढूंड लेना मेरे लिखे पहले ख़त को जो खून की स्याही से लिखा था मैंने जो मैं याद आऊं तुम्हे तो खोल लेना कमरे की खिड़कियाँ और बहने देना हवाओं को उन हवाओं में ढूंड लेना मुझे जो मैं याद आऊं तुम्हे तो देख लेना अपने हाथ की लकीरों में कहीं मिट तो नहीं गया मैं तुम्हारी हथेलियों से जो मैं याद आऊं तुम्हे तो तोड़ लेना बगीचे से वो गुलाब का फ़ूल और चढ़ा देना मेरी कब्र पे देखना मैं हूँ या नहीं —- अभिषेक राजहंस मेरी नयी कविता -" जो मैं याद आऊं तुम्हे"