बहुत कुछ निर्भर हे समाज के मापदंड पर... आज बहुत से जो पागल. पागलख़ानों मे बंद हे अगर वे हज़ार साल पहले हुए होते तो परम् हँस कहलाये जा सकते थे ओर जो हज़ार साल पहले परमहंस कहलाते थे वो अगर आज होते तो पागलखानों क़ी शोभा बड़ा रहे होते.... एक दुर्भग्य हो गया जो सौभग्य हो सकताथा दुर्भाग्य बनाम सौभग्य......