नये ससुराल की रौनक़ बढ़ाती है नई दुल्हन लदे श्रृंगार में सबको रिझाती है नई दुल्हन..! शुरू होती सबेरे से बड़ी आवो भगत उसकी थमाकर चाय की प्याली जगाती है नई दुल्हन..! सभी को नाज़ होता है गज़ब की हूर ले आये मगर धीरे से असली रंग दिखाती है नई दुल्हन..! महीने दो महीने सिलसिला ऐसे ही चलता है गुजरते साल तक रुतबा जमाती है नई दुल्हन..! जो कहते थे कभी लाखों में दुल्हन एक लाये हैं वही कहते हैं अब जीना सिखाती है नई दुल्हन..! अगर चाहे तो घर को स्वर्ग से सुंदर बना जायें मगर चाहे तो अंगुली में नचाती है नई दुल्हन..! बदलते दौर में कर्तव्य पर अधिकार भारी है..! कहां पहले सा संयम अब निभाती है नई दुल्हन..! ©अज्ञात #दुल्हन