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एक लम्हा गुजरा, खोया - खोया सा उस लम्हे में मैं था

एक लम्हा गुजरा,
खोया - खोया सा उस लम्हे में मैं था।
शांति थी बहुत,
शोरगुलों से परे था ।।
आनंद की अनुभूति थी,
विचित्र सा आभास था।
जिनसे मुखातिब न हुआ था आजतक।
अंजाना वैसा एक एहसास था ।।
उस लम्हें का भरपूर आनंद मैं ले नहीं पाया।
अपने मन की व्यथाओं को आलय दे नहीं पाया।।
जब गुजर चुका है अब वो लम्हा ,
तो ये सोचता है मन ,
कितना अच्छा होता न गर उसी लम्हें में सिमट जाता ये तन।।

©Vivek Kumar Tiwari
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