छंदानुभूति --------- पूछती है लेखिनी कह कौन चित्त का चोर है..!! कह कौन मनमंदिर में बसा कह कौन वह सिरमोर है..!! कहता हूं तब,जब जो मिला सब भावना का जोर है.. इक यंत्र हूं कुछ भी नहीं कागज़ कलम तक तोर है..!! जो जल रही है ज्योत पावन प्रेम जिसका नाम है बस है वही निर्मल छवि दैदीप्यता नहि थोर है..!! भावों की माटी में मिला मैं नीर अपने प्रेम का गढ़ता हूं जब मूरत तेरी मिलता नहीं कोई छोर है..!! तृण का हूं तृण, सर्वज्ञ तुम, तुमसे उजाला है मेरा मैं अपावन पावना तुम, मैं तिमिर तू भोर है..!! तुझमें मुझे जो दिखा, तेरा ही तुझको सौंपता फिर भी ना जाने क्यूँ लगे जैसे कमजोर है..!! तुझसे ही मिलती प्रेरणा तुझसे ही मिलती है दिशा फिर भी ना जाने क्यूँ मेरी चर्चाएं चारों ओर है..!! ©अज्ञात #छंदानुभूति