सभागार में सबके सब उस्ताद, कौन सुनेगा द्रौपदी की फ़रियाद, हुए स्वार्थवश अंधे अब धृतराष्ट्र, बर्बरता से हिलने लगी बुनियाद, युद्ध महज बर्बादी का ही नाम, ताक़तवर को अहम करे बर्बाद, मानवता पर ख़तरा चारो ओर, घूम रहे हैं जगह-जगह जल्लाद, शामिल हैं कितने गुनाह में लोग, दूर-दूर तक दिखे नहीं दिलशाद, दिल में वजाहत खौफनाक मंज़र, बढ़ी है दहशत-गर्दों की तादाद, खेलो इतना जमकर 'गुंजन' खेल, जीत के बाजी लौट चलो नाबाद, -- शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #अहम करे बर्बाद#