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// तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी // तुझसे नाराज़ नह

// तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी // 

तुझसे नाराज़ नहीं ज़िंदगी ना कोई शिक़ायत है,
परेशान हूंँ खुद से, खुद से ही मेरी बग़ावत है,

बेहिसाब सवाल हैं ज़वाब के इंतजार में,
मेरे मन की दहलीज़ पर रोज़ चलती एक अदालत है,

उलझ गया हूंँ इस कदर खुद के ही सवालों में,
कि खुद मेरा वज़ूद भी करता नहीं मेरी वकालत है,

खुशियांँ करीब आते-आते मोड़ लेती है राहें,
शायद मेरी नसीब में ही नहीं खुशियों की लिखावट है,

सबको साथ लेकर चलने का ख़्वाब था दिल में,
ख़्वाब हुआ ना पूरा, रह गई दिल में अधूरी जो चाहत है,

कुछ तो कमी रह गई है शायद मेरी ही कोशिशों में,
बिखरा है जो कुछ समेट लूंँ उसको बस यही मेरी हसरत है,

ए ज़िंदगी तुझसे नाराज़ नहीं,न तुझसे कोई शिकायत है,
तुझे लगाना चाहता हूंँ एक बार फिर गले,अगर तेरी इज़ाजत है।

©Mili Saha
  तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी 
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