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मिथुनमाली छन्द अब हनुमत काँधें दोऊ भ्राता । वह अ

मिथुनमाली छन्द 

अब हनुमत काँधें दोऊ भ्राता ।
वह अवध चले ले सीता माता ।।
जलकर लख देखो है वो लंका ।
मन भय जिसके थी सोचो बंका ।।१

दिनकर नित ही है देखो आता ।
सब तम हर तो लेके वो जाता ।।
प्रतिदिन करता हूँ मैं तो पूँजा ।
ध्वनि यह अब तीनो लोको गूँजा ।।२

०४/०५/२०२३   - महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मिथुनमाली छन्द 

अब हनुमत काँधें दोऊ भ्राता ।
वह अवध चले ले सीता माता ।।
जलकर लख देखो है वो लंका ।
मन भय जिसके थी सोचो बंका ।।१

दिनकर नित ही है देखो आता ।
मिथुनमाली छन्द 

अब हनुमत काँधें दोऊ भ्राता ।
वह अवध चले ले सीता माता ।।
जलकर लख देखो है वो लंका ।
मन भय जिसके थी सोचो बंका ।।१

दिनकर नित ही है देखो आता ।
सब तम हर तो लेके वो जाता ।।
प्रतिदिन करता हूँ मैं तो पूँजा ।
ध्वनि यह अब तीनो लोको गूँजा ।।२

०४/०५/२०२३   - महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मिथुनमाली छन्द 

अब हनुमत काँधें दोऊ भ्राता ।
वह अवध चले ले सीता माता ।।
जलकर लख देखो है वो लंका ।
मन भय जिसके थी सोचो बंका ।।१

दिनकर नित ही है देखो आता ।

मिथुनमाली छन्द अब हनुमत काँधें दोऊ भ्राता । वह अवध चले ले सीता माता ।। जलकर लख देखो है वो लंका । मन भय जिसके थी सोचो बंका ।।१ दिनकर नित ही है देखो आता । #कविता