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ज़ब मानवता प्रकाश की नदी बनकर सीमित से असीमि

ज़ब मानवता  
प्रकाश की  नदी  बनकर  सीमित  से  असीमित 
 की  तरफ   या  प्रकाश की  नदी.बन कर अनादि  से 
 अनंत  क़ि ओर  प्रवाहशील होकर बहने लगती  है 
तो  लगता है  मानव ने 
सभ्यता  की  आकाशगंगा को  पार कर लिया है 
और  उस  कल्पवृक्ष  को भी खोज लिया है 
जो मानव  की हर ख्वाहिश  को  
पूरा  करने क़े लिए  कटिबद्ध  है

©Parasram Arora #सभ्यता की  आकाशगंगा......
ज़ब मानवता  
प्रकाश की  नदी  बनकर  सीमित  से  असीमित 
 की  तरफ   या  प्रकाश की  नदी.बन कर अनादि  से 
 अनंत  क़ि ओर  प्रवाहशील होकर बहने लगती  है 
तो  लगता है  मानव ने 
सभ्यता  की  आकाशगंगा को  पार कर लिया है 
और  उस  कल्पवृक्ष  को भी खोज लिया है 
जो मानव  की हर ख्वाहिश  को  
पूरा  करने क़े लिए  कटिबद्ध  है

©Parasram Arora #सभ्यता की  आकाशगंगा......