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रोज सुबह दर्पण के सामने खडे होकर खुद से पूछते क्

रोज सुबह  दर्पण के सामने खडे होकर 
खुद से पूछते क्यों नहीं की 
क्या  सार हैँ?  
कल भी तो देखा था    परसो भी  तो  देखा  था 
वही के वही तो हो   बदल क्या गया ?  
क्या सच मे  रोज तुम   बदल नहीं रहे हो?  
क्या वही नहीं हो जो कल थे 
वही  हो जो  परसो थे?  
बच्चा  जवान हो रहा हैँ 
जिन्दगी मौत मे डल  रही हैँ 
सब बदल रहा हैँ 
दर्पण का इतिहास  गवाही दे रहा हैँ  की  प्रतिपल  तुम्हरा भूगोल  बदल रहा हैँ दर्पण की गवाही।..........
रोज सुबह  दर्पण के सामने खडे होकर 
खुद से पूछते क्यों नहीं की 
क्या  सार हैँ?  
कल भी तो देखा था    परसो भी  तो  देखा  था 
वही के वही तो हो   बदल क्या गया ?  
क्या सच मे  रोज तुम   बदल नहीं रहे हो?  
क्या वही नहीं हो जो कल थे 
वही  हो जो  परसो थे?  
बच्चा  जवान हो रहा हैँ 
जिन्दगी मौत मे डल  रही हैँ 
सब बदल रहा हैँ 
दर्पण का इतिहास  गवाही दे रहा हैँ  की  प्रतिपल  तुम्हरा भूगोल  बदल रहा हैँ दर्पण की गवाही।..........

दर्पण की गवाही।..........