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एक सफर है तय किया ऐसा की जिंदगी जी ली फिर एक बार च

एक सफर है तय किया ऐसा की जिंदगी जी ली फिर एक बार चंद लम्हों में लम्हे थे कुछ ऐसे कि यादों मे कैद रहे तो हर दिन, जैसे एक नया उत्सव हो यूँ तो कैद से छूटे पंछी की उड़ान है भरी पहले भी पर उड़ान मेरी चली है दूर तक बिते कल में मेरी न थकानो की शिकायत थी न शिकायते युँही खुद को बंद हुए देखने की शिकायते तो है मुझे वक्त से यही की यह पल मेरी जिंदगी में पहले क्यों थे कम थी अज़ादी जैसे कल के पलों मे जो अब है ऐहसासों मिली है कुछ यादगार के डोर से बंधी मिली है यादें की न भुलेंगे फिर कभी ये शामें

©SAHIL KUMAR
  आजाद
sahilkumar8501

SAHIL KUMAR

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आजाद #कविता

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