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जिम्मेदारियां बूढ़ा होने नही देती , और कमबख्त उम्र

 जिम्मेदारियां बूढ़ा होने नही देती ,
और कमबख्त उम्र है कि ढली जा रही है,

आज तो  भरपेट मिलेंगें निवाले ,
बस झूठी उम्मीद मन मे पली जा रही है,

कल की फ़िक्र में आँखे ,जागी हैं रात भर,
अब नींद क्योंकर आँखों में ,चली आ रही है,

आज मुफ़लिसी है ,कल का दिन शायद अच्छा हो,
बेवज़ह की ख्वाहिशें मन को ,क्यों छली जा रही हैं,

ढो रहे है वक़्त के काँधों पर ,इस निष्प्राण सी देह को,
मग़र साँसे इस देह को ,खली जा रही हैं ।।

©poonam atrey
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#ढलतीउम्र