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कोल्हू का बैल अपनी नियति पर कुपित नहीं बल्क

कोल्हू  का  बैल 
अपनी नियति पर  कुपित  नहीं   बल्कि  आभारी हैँ 
क्योंकि   वो  गांधारी  की  तरह  बंद  आँखों  से 
वृताकार  कोल्हू क़े  क्षेत्रफल  मे 
भीतरी  आँख से  उसे  देख  चुका हैँ   जो  उसे  चलाये  जा रहा हैँ 
कदाचित  शून्यता  क़े इस   विस्तीर्ण पथ पर  उसे 
वैराग्य  की   अनुभूति   हो रही  हैँ 
जो उसके लिए  उस  पार  का  मार्ग  प्रशस्त  कर रही हैँ वैराग्य........
कोल्हू  का  बैल 
अपनी नियति पर  कुपित  नहीं   बल्कि  आभारी हैँ 
क्योंकि   वो  गांधारी  की  तरह  बंद  आँखों  से 
वृताकार  कोल्हू क़े  क्षेत्रफल  मे 
भीतरी  आँख से  उसे  देख  चुका हैँ   जो  उसे  चलाये  जा रहा हैँ 
कदाचित  शून्यता  क़े इस   विस्तीर्ण पथ पर  उसे 
वैराग्य  की   अनुभूति   हो रही  हैँ 
जो उसके लिए  उस  पार  का  मार्ग  प्रशस्त  कर रही हैँ वैराग्य........

वैराग्य........