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मेज पर खाली है प्याला है कहीं गायब उजाला

   मेज पर खाली है प्याला
   है कहीं गायब उजाला
   कह रहा टूटा सा ऐनक
   दाल में कुछ तो है काला

    शून्य में सब घूरते हैं
    खिड़कियों को दूर से हैं
    क्यों है सन्नाटा यहाँ पर
    क्यों सभी मजबूर से हैं

     छोड़कर मेहमा गया
     बाहर लगाकर एक ताला

    धूल का साम्राज्य फैला
    फट चुका परदा है मैला
    घूमता रहता है  ज़मी पर
     आए दिन विषधर विषैला
     
      झूमती मकड़ी खुशी से
      हर तरफ उसका है जाला

     शान्त क्यों है उसकी खांसी
     गूंजती थी मुस्कराती
     पूछते रहते थे चूहे
      क्या बची रोटी है बासी

  हो रही जिसकी प्रतीक्षा
  अब नहीं आने है वाला

©Sunil Kumar Maurya Bekhud
  #  सन्नाटा

# सन्नाटा #कविता

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