#ग़ज़लغزل: ३१४ ---------------- 2122-1212-22 जिस्म में जैसे रोग होते हैं 'राज़', ऐसे भी लोग होते हैं //१ सिर्फ़ चाहे से कुछ नहीं होता अच्छे कामों के जोग होते हैं //२ सच में सुख-दुख तो कुछ नहीं होता अपने कर्मों के भोग होते हैं /३ रोज़ मरती है ज़ीस्त तिल तिल कर रोज़ हम ज़ेरे सोग होते हैं //४ #राज़_नवादवी (एक अंजान शाइर) 💞💞 ©Raz Nawadwi #Janamashtmi2020