कोहरे की,चादर में लिपटी सुबह,अठखेलियां सी करती,हमारे हिस्से का सूरज भी,ज़ब्त कर खुश होती है,पगली है,नादान है हमें तो,चेहरों पर,गिरती धुंध भी,भा जाती है खुशी से,सराबोर कर जाती है… ©पूर्वार्थ #कोहरा