प्रकृति ने ऐसा खेल रचाया है मानव के बुरे कर्मों की सजा मानव ने ही पाया है सो रहा था इंसान अभी अभी तो जाकर आया है मानव के बुरे कर्मों की सजा मानव ने हीं पाया है कैसा खेल रचाया है संकट के बादल चारों और छाया है | घर घर सब को अकेला पाया है आज साथ रहकर भी दुख का साया आया है प्रकृति ने कैसा खेल रचाया है तोता बोला मैंना बोली ना रहा आदमी का साया है पंछी उड़े आसमान पर मनुष्य को अपने ही घर पर के पाया है| कैसा मंजर आया है चारों ओर घन घोर संकट छाया है| आप मानव को समझ आया है प्राकृतिक दास बनाने की सजा वह पाया है| (corona) #HopeMessage प्रकृति को दास बनाने की सजा