वैदेही से मेरी भेंट "मयतनया" में हुई............. वैदेही जो धरा पर लेटी दूब से अपना मन बांट रही थी...... और वह दूब उसकी पीड़ा सुन अपना रंग त्याग रहा था....... यूं तो रामायण का पूर्ण ज्ञान नहीं रखती, तथापि जो देखा.....जो पढ़ा....जो जाना..उस अनुसार................ भूमिगत होते समय वैदेही के अंतिम वक्तव्य उसे उसके मूल रूप में ला रहे थे.............. प्रारंभ में मूल.......अंत विलेय भी मूल में.......... सारा आवरण सारी कथा तो बस बीच की होती है............. @पुष्पवृतियां ©Pushpvritiya "मयतनया"..... मंदोदरी पर लिखा उपन्यास वैदेही... सीता का एक अन्य नाम #holdmyhand