आज ढ़लती दोपहर में, फिर भोर होना चाहती हूँ, मन के गुमसुम से पहर में,वो अनसुना शोर सुनना चाहती हूँ । आज ढ़लती दोपहर में, फिर भोर होना चाहती हूँ, मन के गुमसुम से पहर में,वो अनसुना शोर सुनना चाहती हूँ । आज सारे मोह तज कर, खुद की चितचोर होना चाहती हूँ, दूसरों को देने से पहले, खुद के लिए बरसना चाहती हूँ ।