ज़िंदगी की शाम साथ तुम्हारे चलती रही, सदा रही हाथ थाम, आज वो समय आया जब हो रही है ज़िन्दगी की शाम। ज़िन्दगी मेरी ऐसी बीती जैसे भरी दोपहरी में हो ठंडी छाँव, ऐसे ही वो पल भी गुज़रे जब हो रही हो ज़िन्दगी की शाम। जब-जब मैं रूठी पिया तुमसे मनाया तुमनें बन सलोने श्याम इस पल क्यूँ रूठ गए जब हो रही मेरी ज़िन्दगी की शाम। अब आ जाओ देर करो न लो 'लेखनी' की कलाई थाम झुकी हुई पलकें मुंदने लगी अब हो गई ज़िन्दगी की शाम। #ज़िन्दगीकीशाम