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// अपनी सोच को दे उड़ान // दुनिया के ख़्यालातों क

// अपनी सोच को दे उड़ान //

दुनिया के ख़्यालातों का पिंजरा जिसके मन घर कर गया,
उसने खुद को ही नहीं अपनी सोच को भी कैद कर दिया,

रह जाएगा मन का पंछी फड़फड़ाता कुछ कर ना पाएगा,
खुद की सोच को करके लहूलुहान, कोई कैसे जी पाएगा,

जो परोसा इस ज़माने ने, किस्मत समझ स्वीकार करना,
ये डर है तेरे अंदर का, क्यों नहीं सीखता तू इससे लड़ना,

जब तक तेरे अंदर डर विद्यमान दुनिया भी तुझे डराएगी,
पल-पल तेरा व़जूद,तेरे किरदार को क्षीण करती जाएगी,

झांँक कर देख तू अपने अंतर्मन में, कितना शोर है वहांँ,
जिस दुनिया की तुझे फ़िक्र है इतनी वो तेरे साथ है कहांँ,

दुनिया की तो फितरत, बंदिश लगाने का चाहिए बहाना,
गर झुकेगा तू, बिखर जाएगा तेरे ख़्वाबों का आशियाना,

निकाल फेंक उस पिंजरे को, अपनी सोच को दे उड़ान,
खुद चलना सीखेगा जब तू,तभी तो बनेगी तेरी पहचान,

आज कदम जो तेरे लड़खड़ाएंगे,कोई तेरे साथ न होगा,
तुझे अपने जीवन रथ का सारथी, स्वयं ही बनना होगा।

©Mili Saha
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