गजल बसाकर दिल फिर से उजाड़ कर दोगे क्या जिदंगी को तुम खिलवाड़ कर दोगे चुप भी रक्खोगे जुबां को अपनी तुम या बातों से ही दिल मे सुराग कर दोगे लाओ ये फूल गुलदान मे रख देता हूँ वरना तुम छूकर इन्हें खराब कर दोगे तुम लोग नशे की लत के इतने पाबंद हो एक दिन अंगूरों को भी शराब कर दोगे तुम मुहाफ़िज़ हो इस चमन के ऐ दोस्त तुम चाहो तो कलियों को गुलाब कर दोगे मारूफ आलम शराब कर दोगे/गजल