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मेरी चाहत को वो ना समझ सके। मैं आहत हूं वो ना सम

मेरी चाहत को वो ना समझ सके।
मैं आहत हूं  वो  ना समझ सके।।

क्या सारा दिन बस बातें करने से,
दिल मिलता है ये वो ना समझ सके।

जब  ये  फ़ोन –वोन  का  ज़माना  न था,
तब मोहबत के मुरीद थे वो ना समझ सके।

पाबंदियां  होती  है दिल  पर  सैंकड़ों,
"दीप" बस! हवसी वो ना समझ सके।

©Kumar Deep Bodhi मेरी चाहत वो समझ ना सके...
मेरी चाहत को वो ना समझ सके।
मैं आहत हूं  वो  ना समझ सके।।

क्या सारा दिन बस बातें करने से,
दिल मिलता है ये वो ना समझ सके।

जब  ये  फ़ोन –वोन  का  ज़माना  न था,
तब मोहबत के मुरीद थे वो ना समझ सके।

पाबंदियां  होती  है दिल  पर  सैंकड़ों,
"दीप" बस! हवसी वो ना समझ सके।

©Kumar Deep Bodhi मेरी चाहत वो समझ ना सके...