शर्मसार है मानवता, और शर्मसार हर बाशिंदा है, लानत है सब इंसानों पर, जो झूठ के साथ जिंदा है! युगों युगों से सहती आई, युगों युगों तक सहेगी क्या, करता कोई उपाय नहीं, बस करते सब हाथ निंदा है! उसकी अस्मत से जी बहलाते, ज़िस्म उसका नोंचते, मेरी नजर में पुरुष नहीं वो, उसकी जात दरिंदा है! आ जाएंगे नेता, अभिनेता बचाव पक्ष में हमेशा ही, जिनकी लूटी है आबरू यहाँ, वही मात शर्मिंदा है! औरत से जन्मे, औरत को ही बदनाम करते हो तुम, सुधर जाओ, यह मत भूलो उसके साथ चामुंडा है! बहुत गुस्से में, बहुत आक्रोश में नहीं बहुत दर्द में लिखा है और किसी के दिल को आहत हो पढ़कर तो इसे समझे और अपनी आवाज़ उठाए.. हिम्मत है तो बुलंद कर आवाज़ का अलम चुप बैठने से हल नहीं होने का मसअला - ज़िया जालंधरी #kumaarsthought #kabrukegayahsab