लोग धूँढते हैं हमको इधर उधर मिलते हैं हम फिलहाल पन्नों पर कहते हैं लोग हमारे दिल में क्या है इक नज़र डालो मेरे शब्दों पर पूँछते हैं तुम्हारा ध्यान किधर है अक्सर उलझे रहते है हम जिन्दगी के मसलों पर पूँछते हैं आखिर तुम काम क्या करते हो काव्य का मलहम मलते हैं हम जख्मों पर। पारुल शर्मा लोग धूँढते हैं हमको इधर उधर मिलते हैं हम फिलहाल पन्नों पर कहते हैं लोग हमारे #दिल में क्या है इक #नज़र डालो मेरे शब्दों पर पूँछते हैं तुम्हारा ध्यान किधर है अक्सर उलझे रहते है हम जिन्दगी के मसलों पर पूँछते हैं आखिर तुम काम क्या करते हो काव्य का #मलहम मलते हैं हम जख्मों पर।