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समुन्द्र के किनारे बैठकर बस । उठती हुई लहरों का श

समुन्द्र के किनारे बैठकर बस ।
 उठती हुई लहरों का शोर सुनना '
मन को "शकुन " देता है ।
 मुसाफिर उस से इस किनारे आकर तेरे शहर की खबरें सुनाते है। 
तो मन को " शकुन" देता है ॥
खामोश सी आने जाने वाली भीड़ में ।
 तलाश तेरी करती आंखें मेरी ।
कोई हमशख्ल दिखाई दे ।
तो मन को ' शकुन ' देता है ॥
मेरी किश्ती को डुबे अरसों बित गए।
कोई अनसान मुसाफिर साहिल से मिला दे ।
हो मन को " शकुन " देता है।

©Shakuntala Sharma
  #thinkingofyou