कोहरा देखो ये कोहरा घना छा रहा, सब ही कुछ तो जमा जा रहा, जज्बात भी जम गये हैं अब के शायद, तभी तो किसी को मैं याद नहीं आ रहा।। #अंकित सारस्वत# #कोहरा