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इश्क़ छुपता नहीं छुपाने से फ़ाएदा क्या नज़र बचाने

इश्क़ छुपता नहीं छुपाने से 
फ़ाएदा क्या नज़र बचाने से 

जब क़फ़स में चराग़ जलते हैं 
लौ निकलती है आशियाने से 

तर्क-ए-उम्मीद इक बहाना था 
कर चुके ये भी सौ बहाने से 

होशियार ऐ निगाह-ए-वक़्त-नवाज़ 
रुख़ बदलते हुए ज़माने से 

हासिल-ए-ज़िक्र हो तुम्ही लेकिन 
इब्तिदा है मिरे फ़साने से 

जागना था हमें ब-कार-ए-हयात 
सोए हैं मौत के बहाने से 

ज़िक्र-ए-महबूब फ़र्ज़ था 'अंजुम' 
कह लिए शे'र इस बहाने से 

अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी adhura naam
इश्क़ छुपता नहीं छुपाने से 
फ़ाएदा क्या नज़र बचाने से 

जब क़फ़स में चराग़ जलते हैं 
लौ निकलती है आशियाने से 

तर्क-ए-उम्मीद इक बहाना था 
कर चुके ये भी सौ बहाने से 

होशियार ऐ निगाह-ए-वक़्त-नवाज़ 
रुख़ बदलते हुए ज़माने से 

हासिल-ए-ज़िक्र हो तुम्ही लेकिन 
इब्तिदा है मिरे फ़साने से 

जागना था हमें ब-कार-ए-हयात 
सोए हैं मौत के बहाने से 

ज़िक्र-ए-महबूब फ़र्ज़ था 'अंजुम' 
कह लिए शे'र इस बहाने से 

अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी adhura naam