'सामाजिक पर्दे' एक-दूसरे की चीख-पुकार कौन सुने, ये औक़ात का ज़माना है, सामाजिक पर्दों की परतें बेहिसाब ये ख़दशात का ज़माना है। कुछ भी कहता रहे दिल अपना यहाँ लोगों की रहती परवाह, ख़ामोश रह कर बनते हैं अनजान, ये सकरात का ज़माना है। दिखते नहीं उँगली उठाने वाले मगर दख़्लअंदाज़ी पूरी होती, बुरे वक़्त में भी कोई दिखता नहीं, ये अस्वात का ज़माना है। मुँह किसी का पकड़ा न जाए, बात-बात पर ज़ुबाँ फ़िसलती, सुन-सुनाकर ख़ूब खिलखिलाते,ये ख़िदमात का ज़माना है। मिन्नतों का तो असर होता नहीं कुछ तो मन्नतें बढ़ाओ 'धुन', जीने के लिए अब कर लो तैयारी, ये सदमात का ज़माना है। ख़दशात- डर, शंकाएँ सकरात- बेहोशी अस्वात- स्वर-समूह Rest Zone 'सामाजिक पर्दे' #restzone #rztask34 #rzलेखकसमूह #sangeetapatidar #ehsaasdilsedilkibaat #yqdidi #life #सामाजिकपर्दे