प्रथम गुरु माता से सीखते हैं हम लिखना पढ़ना। और गुरु बन पिता सिखाते ऊँचाई पर चढ़ना। क़दम - क़दम पर संघर्षों, बाधाओं की ठोकर है- मात पिता ही थाम के ऊँगली सिखलाते हैं बढ़ना। दूजे गुरु जो पूज्य हमारे ज्ञान की दीक्षा देते हैं अनुशासन,कर्त्तव्यनिष्ठता की हमें शिक्षा देते हैं। ज्ञानकोष के अनुपम मोती भरते हैं झोली में- दानी गुरु महान दान में शिक्षा की भिक्षा देते हैं। जीवन गुरु महान सिखाता इन तीनों से ज्यादा नहीं असंभव कुछ भी बंदे कर ले अगर इरादा। बाधाएं कितनी भी आएं कभी हौसला टूटे ना - बिना हार माने है जीतना कर लो ऐसा वादा। जीवन में हम क़दम क़दम पर सीखते हैं जीवन से। जीवन को हम कुछ देते और लेते हैं जीवन से। जीवन जैसा गुरु नहीं कोई जग सा नहीं विद्यालय- सीख दे जाते हैं जो पाते गुरु कितने हैं जीवन से। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©Ripudaman Jha Pinaki #गुरू