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व्यंजन (दोहे) व्यंजन जब देखूँ मुझे, करता है मन खू

व्यंजन (दोहे)

व्यंजन जब देखूँ मुझे, करता है मन खूब।
सबको ही चखता फिरूँ, जाता वरना ऊब।।

शादी में व्यंजन बने, हो खुशबू हर ओर।
खाने पर सब टूटते, उस पर ही अब जोर।।

व्यंजन तब अच्छा लगे, मिले जहाँ पर मान।
जिसे प्रीत तुमसे नहीं, छोड़ वहाँ पकवान।।

दुर्योधन ने भोग में, दिये बहुत पकवान।
व्यंजन भाया कृष्ण को, विदुर दिये सम्मान।।

व्यंजन सबको मोहता, खींचे अपनी ओर।
बंधन सा इसमें लगे, जैसे कोई डोर।।

लगा रहे भगवान को, देखो व्यंजन भोग।
जागी है तब भावना, खुशी मनाते लोग।।
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देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit 
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