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एक ठोकर मिली जीवन में तो कैसे संभलते आ रहे हैं, हम

एक ठोकर मिली जीवन में तो कैसे संभलते आ रहे हैं,
हम संसार के कीचड़ से कैसे बचते आ रहे हैं।
उदास क्यों है तू अपनी ज़िंदगी से,
देख सदियों से कमल कीचड़ में खिलते आ रहे हैं।

©HINDI SAHITYA SAGAR
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