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समंदर जैसी जिंदगी में, एक अकेली सी नाव हूं। तड़पत

समंदर जैसी जिंदगी में, एक अकेली सी नाव हूं।

तड़पते हुए किसी शरीर में,  एक छोटा सा  घाव हूं ।।

खुदके अस्तित्व पर सवाल उठाए जा रहा...(2)

मैं जैस किसी उपन्यास में, पल दो पल का भाव हूं ।।

©Moh (Shivam Tiwari)
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