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#OpenPoetry मुझे बच्चपन में लड़कियों की तरहा संवारत

#OpenPoetry मुझे बच्चपन में लड़कियों की तरहा संवारती थी
मेरी बहन हर रोज मेरी नजर उतरती थी

माँ, बाबा तो चले जाते थे मजदूरी पर
माँ की तरहा दिन भर प्यार लुटाती थी

गलती से उसकी गुड़िया को छू लेना मेरा
वो पूरे घर को सर पर उठा लेती थी

शादी के बाद परायो सा लगता है,घर उसको
जो खुद को बच्चपन में घर का वारिश बताती थी.

.सुमित बरी.13/08/2019
#OpenPoetry मुझे बच्चपन में लड़कियों की तरहा संवारती थी
मेरी बहन हर रोज मेरी नजर उतरती थी

माँ, बाबा तो चले जाते थे मजदूरी पर
माँ की तरहा दिन भर प्यार लुटाती थी

गलती से उसकी गुड़िया को छू लेना मेरा
वो पूरे घर को सर पर उठा लेती थी

शादी के बाद परायो सा लगता है,घर उसको
जो खुद को बच्चपन में घर का वारिश बताती थी.

.सुमित बरी.13/08/2019
sumitbari4227

Sumit Bari

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