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ज़ब्त कर के हँसी को भूल गया मैं तो उस ज़ख़्म ही क

ज़ब्त कर के हँसी को भूल गया 
मैं तो उस ज़ख़्म ही को भूल गया 

ज़ात-दर-ज़ात हम-सफ़र रह कर 
अजनबी अजनबी को भूल गया 

सब दलीलें तो मुझ को याद रहीं 
बहस क्या थी उसी को भूल गया 

सब से पुर-अम्न वाक़िआ' ये है 
आदमी आदमी को भूल गया

क़हक़हा मारते ही दीवाना 
हर ग़म-ए-ज़िंदगी को भूल गया 

क्या क़यामत हुई अगर इक शख़्स 
अपनी ख़ुश-क़िस्मती को भूल गया

जौन एलिया
#birth anniversary

©Deep Aviral
  #Happy birthday jaun elia
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Deep Aviral

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