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बचपन - इख़्तिताम होते - होते, देखो, आज कितनी म

बचपन - इख़्तिताम  होते - होते,  देखो,  आज कितनी  मशरूफ़  हो‌  गयी  है  जिंदगी,,
कभी स्कूल से लौटकर बिना फिक्र खेला करते थे जो,,
अब  वही ,  कल  की  फिक्र  में  रहते ,  दिन-भर  खोए  रहते  है  कुछ  किताबों  में,,

बचपन  था  जब, रोज  कोई  नया  खेल, नयी  शरारत  होती थी,, देखो अब, 
कितनी मशरूफ़ हो गयी है जिंदगी, कि निकल जाता है हर नया दिन कुछ किताबों में,,

मां की कहानियां सुनकर सोना था जब, और उठा करते थे मां की डांट से,, देखो, 
कितनी मशरूफ़ हो गयी है  जिंदगी,, कि सोना-उठना रह गया है बस  कुछ किताबों में,,

वो पल आज भी याद आते है, दोस्तों संग, निकलता था वक्त जब,, और देखो अब,
 कितनी मशरूफ़ हो गयी है जिंदगी, खुद का वक्त भी निकल जाता है उन्हीं किताबों में,,— % & #books #busylife #mashroof #मशरूफ #मशरूफ़ #इख़्तिताम #bachpan
बचपन - इख़्तिताम  होते - होते,  देखो,  आज कितनी  मशरूफ़  हो‌  गयी  है  जिंदगी,,
कभी स्कूल से लौटकर बिना फिक्र खेला करते थे जो,,
अब  वही ,  कल  की  फिक्र  में  रहते ,  दिन-भर  खोए  रहते  है  कुछ  किताबों  में,,

बचपन  था  जब, रोज  कोई  नया  खेल, नयी  शरारत  होती थी,, देखो अब, 
कितनी मशरूफ़ हो गयी है जिंदगी, कि निकल जाता है हर नया दिन कुछ किताबों में,,

मां की कहानियां सुनकर सोना था जब, और उठा करते थे मां की डांट से,, देखो, 
कितनी मशरूफ़ हो गयी है  जिंदगी,, कि सोना-उठना रह गया है बस  कुछ किताबों में,,

वो पल आज भी याद आते है, दोस्तों संग, निकलता था वक्त जब,, और देखो अब,
 कितनी मशरूफ़ हो गयी है जिंदगी, खुद का वक्त भी निकल जाता है उन्हीं किताबों में,,— % & #books #busylife #mashroof #मशरूफ #मशरूफ़ #इख़्तिताम #bachpan
hardik1674722883598

HARDIK KALRA

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