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मन एक पतंग है उड़ता है बहत । धागे जब सक्त नहीं हो

मन एक पतंग है 
उड़ता है बहत ।
धागे जब सक्त नहीं होता 
टूट जाता है ।
मन की विचार सही 
नहीं होता है।
 तो 
गलत से रूठ जाता है ।
और तकलीफ बढ़ जाता है 
पतंग के धागे पुनः जुड़ने से 
फिर से वो पतंग नील 
गगन से उड़ता है ।
पतंग के धागे दृढ़ रखने से 
टूटता नहीं मगर उड़ता है।
kabi - sribatsa, Maneswar, sambalpur, Odisha

©Sri batsa Meher
  मन पतंग

मन पतंग #କବିତା

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