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"श्रृंगार जब करती हो" यूं तो बिना श्रृंगार

"श्रृंगार  जब  करती  हो"

यूं  तो  बिना  श्रृंगार  ही,
खुशियों से घर मेरा रोशन
श्रृंगार  जब  करती  हो,
 दिन  दशहरा  और  रात 
दिवाली  मना  देती  हो।

आंखों  की  झील  में,
सपनों की  सैर करता हूं,
 मुस्कुराकर  मोतियों  की
और अधरों से अमृत की
 बरसात  करा  देती हो।

श्रृंगार  जब  करती  हो
 दिन  दशहरा और रात 
दिवाली  मना  देती  हो।

©Anuj Ray
  #श्रृंगार जब करती हो"
anujray7003

Anuj Ray

Bronze Star
New Creator
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#श्रृंगार जब करती हो" #कविता

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