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"छाया" सदैव ही "काया" से भिन्न नज़र आती है, "छाया"

"छाया" सदैव ही "काया" से भिन्न नज़र आती है,
"छाया" भ्रामिनी..."काया" यथार्थ दर्शाती है......
किन्तु "अंधेरे" में...."सघन अंधेरे" में....वह "रात्रि" जो "प्रकाश पूंजो" से निवृत है....
".छाया-काया" का मिलाप संभव कर जाती है.......

©Pushpvritiya #samandar अजीब अजीब थोट्स आते हैं मुझे
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Pushpvritiya

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#samandar अजीब अजीब थोट्स आते हैं मुझे

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