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दंगा ***** झुलसे दिन सिसकते सवेरे बेबस शामें ----*

दंगा
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झुलसे दिन
सिसकते सवेरे
बेबस शामें
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सुबकती माँ
झोली भरके ग़म
द्रवित मन
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घर की रोटी
चढ़ गयी है बलि
बेमन राहें
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चैन-ओ-सुकूं
लेकर संग अपने
दे गया दंगा
19/4/2022
रविवार

©सुधा भारद्वाज
  #दंगा(#हिन्दी_लेखन)#हाइकु