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वो कई बार बिलखी बाहर निकलने को वो कई बार लड़ी खु

 वो कई बार बिलखी बाहर निकलने को 
वो कई बार लड़ी खुद निखरने को 
वो क्या न कहलाई एक सपना देखने पर
कई बार तड़पी सपने टूटने पर 
पर देर ही सही 
वो निकली है सैर पर 
घर के बाहर 
अकेले नहीं ..
खुद उनके साथ जिनसे लड़ी थी कभी 
हां उनके ही कंधों पर एक विशेष रथ पर सवार
कोई नहीं रोकता उसे आज 
ये उसकी लड़ाई में उसकी जीत ही तो थी 
कि जिनसे लड़ रही थी 
वही लेकर चल रहे हैं उसे बिन रोक टोक
बिन झगड़े के ...
उसकी घर के बाहर पहली और 
अंतिम यात्रा पर !!!!

©Nalini Tiwari
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