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तन्हाई से उदासी से तकल्लुफ कैसा तुम्हे ओढ़ने समेटने

तन्हाई से उदासी से तकल्लुफ कैसा
तुम्हे ओढ़ने समेटने में लिहाज कैसा

मेहरबान तुम भी हो और ख़ुदाई भी
ख्वाब का हकीकत से वास्ता कैसा

रात भर लगा रहता महफ़िल बदस्तूर
सहर को रात से बेख्याली कैसा

फिर लग गया है मेला तेरी यादों का 
कोई खो जाए तुझमें भला हर्ज कैसा

एक आख़री मुलाक़ात की ख्वाहिश
गर आख़िरी से आगाज हो हर्ज कैसा
🍁राकेश तिवारी 🍁 Hello Resties! ❤️ 

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तन्हाई से उदासी से तकल्लुफ कैसा
तुम्हे ओढ़ने समेटने में लिहाज कैसा

मेहरबान तुम भी हो और ख़ुदाई भी
ख्वाब का हकीकत से वास्ता कैसा

रात भर लगा रहता महफ़िल बदस्तूर
सहर को रात से बेख्याली कैसा

फिर लग गया है मेला तेरी यादों का 
कोई खो जाए तुझमें भला हर्ज कैसा

एक आख़री मुलाक़ात की ख्वाहिश
गर आख़िरी से आगाज हो हर्ज कैसा
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