मैंने देखा है तुम्हें घूमते हुए, उठा कर इक मुर्दा सा बदन, रूह लाचार सी घिसट रही थी पीछे पीछे, लेकर निराशाओं से भरा भारी मन, रो कर खुद को हलाक करना कहां अच्छा है, हर खुशी के लिए नहीं काम आता यह बदन, कभी मां-बाप के बारे भी तुमने सोचा है, या यूं ही खा ली थी, उनकी झूठी कसम। ©Harvinder Ahuja #लाडो