मान जा मेरे दिल... मान जा अब तू मेरे दिल..., अब खुद को तू खुदही से मिल, कब तक चुकाएगा उसके काले जादु(आँखे) का बिल, नासमझ समझ को अपने हातो से करदे किल, मान भी जा अब तू मेरे दिल, आँगन मे भी धुप मे फुल भी गए है खिल, खिले हैं जो आँगन मे फुल; कहते हैं उसको इतल्ला किये बगैर भी; कभी जा के मिल... मान जा ना अब मेरे दिल... एक बार तोह उसे जा के मिल... ✍️सुहास रविंद्र आठवले ©Suhas Athawale मान जा मेरे दिल... मान जा अब तू मेरे दिल..., अब खुद को तू खुदही से मिल, कब तक चुकाएगा उसके काले जादु(आँखे) का बिल, नासमझ समझ को अपने हातो से करदे किल, मान भी जा अब तू मेरे दिल, आँगन मे भी धुप मे फुल भी गए है खिल,