पूर्ण चाँद में दमके नाम तुम्हारा प्रेम थाली में दुआ सजाती हूं कलाई पर बांध नेह का धागा भ्राता भव्य रक्षाबंधन मनाती हूं सुना कर्णवती द्रौपदी को गाथा बिता इतिहास तुम्हें बताती हूं कलाई पर बांध नेह का धागा भ्राता भव्य रक्षाबंधन मनाती हूं सज सरहद पर माटी के लाल जान हथेली पर जब धर लेते है छोटे-छोटे रेशम के डोरे तब नव उल्लास मन मे भर देते है मधुर मधुवन सरीखे बन्धन की बतास चहूंओर आज फैलाती हूं कलाई पर बांध नेह का धागा भ्राता भव्य रक्षाबंधन मनाती हूं ज्यों श्रावण पूर्णिमा रौशन होती त्यों अम्बर में तुम्हारा प्रकाश रहे कर स्तुति गान ईश्वर समुख हाथ जोड़े बहना आज कहे भर करुणा काजल चक्षुओं में पिरो मोती संग मोती सजाती हूं कलाई पर बांध नेह का धागा भ्राता भव्य रक्षाबंधन मनाती हूं पग पग प्रशस्त कर राह मेरी लैंगिक भेदभाव को नकार देना जितना देते हो सहर्ष सम्मान उतना हरेक स्त्री को मान देना वादों की बरसो पुरानी ये रीत सस्नेह पुनः आज निभाती हूं कलाई पर बांध नेह का धागा भ्राता भव्य रक्षाबंधन मनाती हूं स्वस्तिक सज्जित है थाली में चावल दानों में अनुराग बसा है महक मेहंदी में महक रहा रिश्ता रंग प्रीत प्रेम का गजरा सजा है मीठी मिश्री संग प्रेम शीरा इस त्यौहार तुम्हें खिलाती हूं कलाई पर बांध नेह का धागा भ्राता भव्य रक्षाबंधन मनाती हूं ©Sagar Oza #rakshabandhan #sagaroza #sagarozashayari #sagarozagoogle