कि, इश्क़ में लफ़्ज़ों का ख़ामोश रहना भी ठीक लगता हैं
यूँ आपका हमसे, हर वक़्त मशवरा भी ठीक लगता हैं,
ये फ़कत(सिर्फ़) चंद लफ़्ज़ों का खेल नहीं था साहेब,
खैर, अब कमरे की बत्तियां बुझाता कोई और भी ठीक लगता हैं
कि, गुजरेंगी तुझे ले जाने वाली कईं रेलगाड़ियाँ मेरे शहर होते ही,
ट्रेन रुकते ही प्लैटफॉर्म पे आपका आँख चुराना भी ठीक लगता हैं